संजय गाँधी और मारुती || Sanjay Gandhi & Maruti
वेल्हम बॉयज़ स्कूल और फिर देहरादून के दून स्कूल में अपनी शुरुआती पढ़ाई पूरी करने के बाद संजय गांधी को कारों की दिवानगी ने ऑटोमोटिव इंजीनियरिंग की ओर आकर्षित किया. एडवेंचर के दीवाने संजय की दिलचस्पी स्पोर्ट्स कारों के अलावा एयरक्राफ्ट एरोबैटिक्स में भी थी. उन्होंने रोल्स-रॉयस (Rolls Royce) के साथ क्रेवे, इंग्लैंड में तीन साल तक काम किया. वह 1968 में एक आइडिया लेकर भारत लौटे. ये आइडिया था एक स्वदेशी कार बनाने का, जो भारत के मिडिल क्लास की जेब पर बोझ न डाले. तब यह विचार दूरदर्शी लग रहा था, लेकिन बाद में जो हुआ वह गांधी परिवार के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं था. दिल्ली में बनाया कार का प्रोटोटाइप || Prototype of the car in Delhi
वह 1968 में भारत लौटे थे और तब सरकार, योजना आयोग को बताने में कायमाब रहे कि निजी क्षेत्र में एक छोटी कार का प्रोडक्शन अच्छा विचार था. संजय ने दिल्ली में ट्रक ड्राइवरों के पसंदीदा अड्डे गुलाबी बाग में एक प्रोटोटाइप डेवलप करने की प्रक्रिया शुरू की.गुलाबी बाग के पास वर्कशॉप में खुद चेसिस बनाया. जामा मस्जिद क्षेत्र से कुछ हिस्सों को मंगवाया गया और कार को आगे बढ़ाने के लिए Triumph मोटरसाइकिल इंजन का इस्तेमाल किया. मोटर में कुछ सुधार किए गए, और कार को टेस्ट के लिए अहमदनगर भी ले जाया गया. 3 शुरुआती कारें बनाने के बाद गैरेज भर गया था. इसके बाद संजय ने लक्ष्मण सिल्वेनिया कारखाने में बेस को शिफ्ट कर दिया. यहीं पर उन्होंने 18 महीने एक अलग शेड में बिताए.
Vehicles Research Development Establishment (VRDE) में फेल हो गया प्रोटोटाइप
वाहन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान, अहमदनगर में Maruti पर फीजेबिलिटी टेस्ट करने का फैसला लिया गया लेकिन प्रोटोटाइप टेस्ट पास नहीं कर सका. इसका मतलब यह कि वह सड़क योग्य नहीं था.फिर भी Maruti Motors Limited नाम से एक कंपनी 04 जून, 1971 को बनाई गई. संजय गांधी इसके पहले मैनेजिंग डायरेक्टर थे. रिपोर्ट बताती हैं कि न तो कंपनी को और न ही इसके चीफ को कार बनाने, प्रोटोटाइप तैयार करने या किसी कार निर्माता के साथ साझेदारी का कोई अनुभव था. कंपनी ने किसी तरह का डिजाइन प्रपोजल भी तैयार नहीं किया था.
Sanjay ने Maruti के सपने को पूरा करने में मां की मदद ली || Sanjay took mother's help to fulfill Maruti's dream
लेकिन संजय अपने मकसद पर अडिग थे. संजय ने अपने सपने को पूरा करने के लिए अपनी मां की मदद ली. नतीजा ये हुआ कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल ने एक 'आम आदमी की कार' के प्रोडक्शन का प्रस्ताव रखा. एक ऐसा वाहन जो सस्ता, सस्ता, कुशल और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण स्वदेशी होना चाहिए.इसके बाद छोटी कार के लाइसेंस के लिए कुल 18 कंपनियों ने आवेदन दिए. इन कंपनियों में टाटा के टेल्को भी शामिल थी जो बाद में टाटा मोटर्स बन गई. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी की कंपनी Maruti ने भी लाइसेंस के लिए आवेदन दिया.
संजय की कंपनी को 1974 में 50 हजार कार प्रोडक्शन का लाइसेंस मिला
संजय का प्रोटाटाइप फेल होने के बावजूद जुलाई 1974 में Maruti को 50,000 कारों के प्रोडक्शन के लिए औद्योगिक लाइसेंस दे दिया गया.
सरकार ने आम लोगों की कार बनाने के लिए संजय की कंपनी Maruti को गुड़गांव में 12,000 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से 297 एकड़ जमीनें दी. यहां ऐसी छोटी कारें बनाने की योजना थी, जो आम लोगों के बजट की हो.
सरकार ने सितंबर 1970 में एक आशय पत्र जारी किया, जिसने संजय को एक वर्ष में 50,000 कारों तक का उत्पादन करने की अनुमति दी. बंसीलाल, हरियाणा के मुख्यमंत्री थे और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नजरों में बने रहने के लिए उन्होंने संजय को कारखाने के लिए एक साइट चुनने में मदद के लिए अपने अधिकारियों को भेजा. उन्होंने उन्हें सोनीपत में जमीन देने की पेशकश की, लेकिन संजय इसे दिल्ली के नजदीक चाहते थे.
हरियाणा के मुख्यमंत्री बंसीलाल ने संजय गांधी की मदद की || Haryana Chief Minister Bansilal helped Sanjay Gandhi
विरोधियों का कहना था कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बंसीलाल, जो उस समय हरियाणा के मुख्यमंत्री थे और संजय गांधी के दोस्त भी थे. बंसीलाल की मदद से संजय ने गुड़गांव में कुछ जमीन हासिल की..हरियाणा सरकार द्वारा किसानों से औने-पौने दामों पर भूमि का अधिग्रहण किया गया और Maruti Limited नामक एक कंपनी को सौंप दिया गया जिसे संजय ने अगस्त 1971 में शुरू किया था.हालांकि, संजय की कंपनी को कार का ठेका देने के इंदिरा सरकार के फैसले की व्यापक आलोचना हुई लेकिन 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम और पाकिस्तान पर भारत की जीत ने इस मुद्दे को पीछे धकेल दिया.
Maruti Limited के गठन से सात महीने पहले16.11.1970 को संजय गांधी और राजीव गांधी और परिवार ने M/s. Maruti Technical Services (P) Limited का गठन किया। नतीजतन, संजय गांधी द्वारा 25 लाख रुपये की अधिकृत पूंजी के साथ 4.6.1971 को एक सार्वजनिक लिमिटेड कंपनी, Maruti Limited, का गठन किया गया था।
Maruti में पूंजी की बढ़ोतरी
नवंबर 1971 में Maruti Limited की अधिकृत पूंजी बढ़ाकर 4.75 करोड़ और बाद में रु। जून 1972 में कंपनी को और शेयर जारी करने में सक्षम बनाने के लिए 10 करोड़, साथ ही कंपनी को बैंक ऋण, सार्वजनिक जमा और डीलर जमा के रूप में अतिरिक्त धन उधार लेने में सक्षम बनाने के लिए।Maruti Technical Services (P) Limited (MTS) ने जून 1972 में Maruti Limited के साथ एक समझौता किया, जिसके द्वारा Maruti Limited द्वारा कारों के किसी भी व्यावसायिक उत्पादन के बावजूद MTS कारों की शुद्ध बिक्री पर न्यूनतम 2.50 लाख रुपये प्रति वर्ष के अधीन 2 प्रतिशत कमीशन के हकदार थे। ।
इन शर्तों पर 20 साल की अवधि के लिए सहमति बनी थी। रुपये का एक प्रारंभिक एकमुश्त फुटपाथ भी। Maruti Limited द्वारा MTS को 5 लाख का भुगतान किया गया था। 25 जनवरी 1975 तक MTS ने तकनीकी ज्ञान भुगतान के माध्यम से Maruti Limited से 10.20 लाख रुपये की राशि अर्जित की थी। इस समझौते के आधार पर गांधी परिवार (संजय और राजीव) Maruti Limited के भाग्य की परवाह किए बिना, अगले 20 वर्षों के लिए 2.5 लाख रुपये की न्यूनतम आय सुनिश्चित करने में सक्षम थे। ।
25 जनवरी 1975 को इस समझौते में एक आश्चर्यजनक परिवर्तन लागू किया गया जिसके द्वारा Maruti Limited कारों के वाणिज्यिक उत्पादन/बिक्री शुरू होने के बाद ही आगे कमीशन का भुगतान करेगी। वास्तव में संजय गांधी उस कंपनी की आय को सीमित कर रहे थे जिसमें वे प्रमुख लाभार्थी थे। यह अनुमान का विषय है कि उसने इस समझौते के बारे में अपना विचार क्यों बदला - क्या यह अंतरात्मा का अचानक हमला था? संसद में संभावित आलोचना का डर?
इसके अलावा, Maruti Technical Services (P) Limited ने भी अपनी सहायक कंपनी Maruti Heavy Vehicles (P) Limited (HMV) के साथ 1.4.1975 को 10 साल की अवधि के लिए HMV को तकनीकी जानकारी प्रदान करने के लिए एक समझौता किया। जिसके विचार में HMV रोड रोलर्स की अपनी शुद्ध बिक्री पर 2 प्रतिशत और स्पेयर पार्ट्स/घटकों की अपनी शुद्ध बिक्री पर 2 प्रतिशत का भुगतान करेगा चाहे वह कंपनी द्वारा निर्मित या निर्मित ना किया गया हो।
उपरोक्त व्यवस्थाओं को ध्यान में रखते हुए MTS, जिसमें संजय गांधी और राजीव गांधी का परिवार एकमात्र लाभार्थी हैं, रुपये के भंडार का निर्माण करने में सक्षम थे। चतुर वित्तीय योजना के कारण 21/2 वर्ष की छोटी अवधि के दौरान 3.06 लाख; यह संजय और राजीव गांधी और परिवार द्वारा योगदान की गई पूंजी (2.15 लाख रुपये) का लगभग 150 प्रतिशत है।
संजय गांधी का ड्रीम प्रोजेक्ट फेल हो गया || Sanjay Gandhi's dream project failed
शुरुआत में सोचा गया था कि आम लोगों की कार की कीमत 8,000 रुपये के पास रखी जाएगी. कई साल गुजरने के बाद अंतत: मई 1975 में आम लोगों की कार की लॉन्चिंग की चर्चा होने लगी. लॉन्चिंग की चर्चा के साथ इसकी एक्स-शोरूम कीमत निर्धारित की गई, जो पहले से तय कीमत की तुलना में दो गुने से अधिक 16,500 रुपये थी. इस तरह हरियाणा में इस गाड़ी की ऑन रोड कीमत करीब 21,000 रुपये बैठती.लॉन्चिंग की चर्चा करते हुए मई 1975 में संजय ने दावा किया था कि वह हर महीने 12-20 कारें बना सकते हैं. उन्होंने अगले चार साल में इसे बढ़ाकर 200 कारें प्रति दिन तक ले जाने का भी दावा किया था. हालांकि 31 मार्च 1976 तक संजय की कंपनी महज 21 Maruti कारें बना पाई थी.
इंदिरा गांधी ने जून 1975 में देश में इमरजेंसी लगा दी थी. इमरजेंसी लगते ही संजय राजनीति में कूद गए थे. हालांकि इसके बाद भी वह Maruti के एमडी बने रहे और इमरजेंसी में भी 4,000 रुपये की सैलरी हर महीने उठाते रहे.
1977 में इंदिरा चुनाव हारीं, Maruti पर भी ताला लगा || Indira lost the election in 1977, Maruti project scrapped
इमरजेंसी के बाद 1977 में हुए आम चुनाव में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस चुनाव हार गई. Maruti का मामला अदालत पहुंचा. 1978 में कोर्ट ने Maruti को बंद करने का आदेश दे दिया. संजय की Maruti और आम लोगों की कार वाली कहानी के सपने पर विराम लग गया.1980 में संजय के निधन के बाद फिर शुरू हुआ प्रोजेक्ट || The project started again after Sanjay's death in 1980
साल 1980 में कांग्रेस के सत्ता में वापस आने के बाद इस प्रोजेक्ट को फिर से खड़ा किया जा सकता था लेकिन दिल्ली के सफदरजंग हवाई अड्डे के पास एक दो सीटों वाले विमान को उड़ाते वक्त संजय गांधी की आकस्मिक मृत्यु हो गई.उनके निधन के बाद, इंदिरा ने अरुण नेहरू को स्थिति का जायजा लेने और यह जांचने के लिए बुलाया कि क्या भारत की पहली घरेलू कार बनाने के उनके बेटे के सपने को पुनर्जीवित करना संभव है. नेहरू ने महसूस किया कि परियोजना में कुछ खास था लेकिन जरूरत थी तो एक पेशेवर कार निर्माता की. जानकारों की एक टीम ने एक दुनिया भर में कई कार मैन्युफैक्चरर्स का दौरा किया. जापान की सुजुकी इस डील को करने के लिए आगे आई. सरकार ने वोक्सवैगन से भी संपर्क किया था. जब सुजुकी को इसके बारे में पता चला, तो उसने जर्मन कंपनी को भारत की पहली पीपल्स कार (Maruti 800) बनाने की दौड़ से बाहर रखने में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी.
सुज़ुकी ने सरकार को अपने 'मॉडल 796' का डिज़ाइन दिखाया, जो जापान और पूर्वी एशियाई देशों में कामयाब रही थी. देश की नब्ज भांपने के लिए उसने कई जांच प्रक्रियाओं को पूरा किया और आखिर में एक ऐसी कार बनाई जो भारतीय परिस्थितियों का सामना कर सके. आगे जो हुआ वह इतिहास है.
Image: THE HINDU
देश की सड़कों पर छा जाने वाले इस Maruti 800 और संजय के बनाए मॉडल को देखें, तो इन दोनों में कोई समानता नहीं थी. सिवाय इसके कि नाम में Maruti जुड़ा हुआ था और बैज पुराना था.
दिलचस्प बात यह है कि पहली Maruti 800 की डिलीवरी 14 दिसंबर 1983 को ही हुई थी. तब इसी दिन दिवंगत संजय गांधी की 37वीं जयंती थी. ऐसा इंदिरा की इच्छा पर हुआ था.
Maruti को 1981 में स्थापित किया गया था और 2003 तक यह भारत सरकार के स्वामित्व में था. फिर इसे जापानी व्हीकल मैन्युफैक्चरर सुजुकी मोटर कॉर्पोरेशन को बेच दिया गया था. फरवरी 2022 तक भारतीय पैसेंजर कार बाजार में Maruti सुजुकी की बाजार हिस्सेदारी 44.2 प्रतिशत थी.
Prime Minister Indira Gandhi, with Rajiv Gandhi and ND Tiwari in the background, inspects a model car before inaugurating the Maruti factory in Delhi on December 14, 1983
देश की सड़कों पर छा जाने वाले इस Maruti 800 और संजय के बनाए मॉडल को देखें, तो इन दोनों में कोई समानता नहीं थी. सिवाय इसके कि नाम में Maruti जुड़ा हुआ था और बैज पुराना था.
दिलचस्प बात यह है कि पहली Maruti 800 की डिलीवरी 14 दिसंबर 1983 को ही हुई थी. तब इसी दिन दिवंगत संजय गांधी की 37वीं जयंती थी. ऐसा इंदिरा की इच्छा पर हुआ था.
Maruti को 1981 में स्थापित किया गया था और 2003 तक यह भारत सरकार के स्वामित्व में था. फिर इसे जापानी व्हीकल मैन्युफैक्चरर सुजुकी मोटर कॉर्पोरेशन को बेच दिया गया था. फरवरी 2022 तक भारतीय पैसेंजर कार बाजार में Maruti सुजुकी की बाजार हिस्सेदारी 44.2 प्रतिशत थी.
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यदि आपको उपरोक्त जानकारी में कोई परिवर्तन करने की आवश्यकता है, तो कृपया वैध प्रमाण के साथ हमसे संपर्क करें। हालाँकि इस बुराई के खिलाफ समाज में जागरूकता पैदा करने और भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लिए युवा पीढ़ी को तैयार करने के लिए गंभीर प्रयास किया जा रहा है।
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